27-08-69 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन

“मदद लेने का साधन है हिम्मत”

(सन्तरी दादी के तन द्वारा)

आज छोटे बगीचे में सैर करने आये हैं। रुहानी बच्चों से सन्मुख मिलने आये हैं। बाप समझते हैं हमारे यह ये रत्न हैं। नयनों का नूर बच्चे हमेशा रूहें गुलाब सदृश्य खुशबू देते रहते हैं। इतनी बच्चों में हिम्मत है, जितना बाप का फेथ है? आज बच्चों ने बुलाया नहीं है। बिना बुलाये बाप आये हैं। यह अनादि बना बनाया कायदा है। काम पर सजाने के लिए बाप को बिना पूछे ही आना पड़ता है। आज बच्चों से प्रश्र पूछते हैं, आज बगीचे में जो बैठे हैं अपने को ऐसा फूल समझते हैं जो कि गुलदस्ते में शोभा देने लायक हो? राखी हरेक को बाँधी हुई है? राखी बन्धन का रहस्य क्या है?

तो आज बाप-बच्चों से मिलने आये हैं। बहुत बड़ी जिम्मेवारी उठाई है। छोटी-छोटी जवाबदारी जो उठाते हैं, तो भी कितना थक जाते हैं। सारी सृष्टि का बोझा किन पर है? बोझा सिर पर चढ़ाना भी है तो उतारना भी है। परन्तु थकना नहीं है। बच्चों को थकावट क्यों फील होती है? क्योंकि अपने को रूहे गुलाब रूह नहीं समझते हैं। रूह समझें तो देह से न्यारा और प्यारा रहें। जैसे बाप है, वैसे ही बच्चे हैं। जितनी हिम्मत है तो उतनी ही मदद भी बाप दे ही रहे हैं। हिम्मत से मदद मिलती है और मदद से ही पहाड़ उठता है। कलियुगी मिट्टी के पहाड़ को उठाकर सतयुगी सोना बनाना है। कैसे बनाना है? यही गुंजाइश प्रश्र में भी भरी हुई है। तो आज थोड़े समय के लिए मुलाकात करने बाप को आना पड़ा। बाप को इच्छा होती है? वह तो इच्छा से न्यारा इच्छा रहित है। फिर भी इच्छा क्यों? आप सभी इच्छा रहित बने तो बाप को इच्छा हुई। आप बच्चे जानते नहीं हो कि बाप किसी को कैसे सम्भालते थे? और सम्भाल भी रहे हैं। इतनी जवाबदारी कैसे रम्ज्र से सम्भाल कर बाप की भी इच्छा पूरी की तो अब बच्चों की कभी कर रहे हैं। इसको ही राझू-रम्ज़बाज कहा जाता है। बाप को तो हर एक बच्चे की इच्छा रखनी पड़ती है। रखकर फिर भी कहीं पर अपनी चलानी होती है। बच्चे की क्यों रखता है? बच्चे सभी नयनों के नूर हैं। इसलिए ही पहले बच्चे फिर बाप। सिरमौर को कभी सिर पर भी बिठाना पड़ता है। बच्चों को खुशी दिलानी होती है। पुरुषार्थ करते-करते ठण्डे पड़ जाते हो तो फिर पुरुषार्थ को आगे बढ़ाने की कोशिश करो। तब प्रश्न पूछ रहे हैं कि कंगन पूरा बंधा हुआ है? धरत पड़े, पर धर्म न छोड़िये। आज के दिन तो विरोधी भी दुश्मन से दोस्त बन जाते हैं।

बच्चों को सदैव कदम आगे बढ़ाना है। ताज तख्त जो मिलने वाला है, नजर उस पर हो। सिर्फ कहने तक ही नहीं कि हम तो यह बनेंगे परन्तु अभी तो करने तक धारणा रखनी है। लक्ष्मी नारायण कैसे चलते हैं, कैसे कदम उठाते हैं, कैसे नयन नीचे ऊपर करते हैं, वैसी चलन हो तब लक्ष्मी नारायण बनेंगे। अभी नयन ऊपर करोगे तो देह अभिमान आ जायेगा कि मेरे जैसा तो कोई नहीं है। मेरा तेरा आ जायेगा। भक्ति मार्ग में भी कहते हैं नम्रता मनुष्यों के नयन नीचे कर देती है। हर एक को अपने को सजाना है। सदैव खुशबू देते रहो। लक्ष्य जो मिला है वैसा ही लक्ष्मी नारायण बनना है। राइट रास्ते पर चलना है। कदम आगे-आगे बढ़ाना है। बाबा के पास आज संदेशी भोग ले आई तो बाबा ने कहा कि बच्चे तो यहाँ पर बैठे ही प्रिन्स बन गये हैं। बाबा की बेगरी टोली भूल गयी है। वैभव तो वहाँ मिलने हैं। संगम पर बेगरी टोली याद पड़ती है। वो ही बाप को प्यारी लगती है। सुदामा के चावलों की वैल्यु है ना। इस टोली में प्यार भरा हुआ है। बनाने वाले ने प्यार भरा है तो बाप और ही प्यार भरकर बच्चों को खिलाते हैं। (सिन्धी हलुवा खिलाया) दीदी सर्विस पूरी करके आई है। सब ठीक थे, कायदे सिर चल रहा है सब? डरने की कोई बात नहीं है। समय की बलिहारी है। बच्चों को पुरुषार्थ तो हर बात का करना है। समय को देखकर अविनाशी ज्ञान यज्ञ को जो कुण्ड कहा जाता है उसको भरना है। स्वाहा कर देना है। यह तो हमेशा कायम ही रहना है। वह यह तो 10-12 दिन किया फिर जैसे का वैसा हो जाता है। यह तो अविनाशी यह है। शिवबाबा का भण्डारा भरपूर काल कंटक दूर। दूर तब होंगे जबकि नई दुनिया में जायेंगे। सब ठीक ही चलता रहेगा। सिर्फ बच्चों की बुद्धि चुस्त, दूरांदेशी होनी चाहिए। दूरांदेशी करने के लिए ताज तख्त तो दे ही दिया है। 

अच्छा !!!